लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?

लेखक का मानना है कि अनुभव घटित का होता है जबकि अनुभूति संवेदना और कल्पना के माध्यम से उस सत्य और अहसास को आत्मसात कर लेती है जो वास्तव में रचनाकार के साथ प्रत्यक्ष रूप में घटित ही नहीं हुई है और एक बार जब रचनाकार उस घटना की प्रत्यक्ष अनुभूति कर लेता है तब उसे ऐसा लगता है कि यह घटना उसके सामने प्रत्यक्ष रूप में घटी हो, मानो वह उस घटना को असल में जी लेता है|

अतः लेखक अज्ञेय जी का का मानना है कि जब तक रचनाकार का हृदय संवेदना से व्यथित नहीं होता है तब तक प्रत्यक्ष अनुभव उसे लिखने के लिए विवश नहीं कर सकता है। लिखने की यह विवशता आंतरिक अनुभूति से होती है और भावना स्वयं शब्दों में प्रस्फुटित होने लगती है। इसी कारण से लिखने में अंदर की अनुभूति विशेष मदद करती है और लिखने की प्रक्रिया को लेखक के लिए आसान और रोचक बना देती है| इसलिए लेखक प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति को लिखने में अधिक सहायक मानता है|


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